Sunday, February 22, 2009

'संगीत के नाम पर शोर न हो'

'संगीत के नाम पर शोर न हो'
मशहूर सरोद वादक उस्ताद अमजद अली ख़ान की नज़रों में संगीत न तो कोई मजाक है और न ही कोई गुदगुदाने वाली चीज. संगीत के नाम पर होने वाले शोर से वे सहमत नहीं हैं.
वे कहते हैं कि आज के संगीत में केवल इसका मनोरंजक पक्ष ही देखने को मिलता है. टेलीविजन चैनलों पर गंभीर संगीत तो देखने को ही नहीं मिलता. उनका कहना है कि फ्यूजन संगीत का प्रयोग पूरी दुनिया में हो रहा है, लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लय खत्म नहीं हो.
स्कॉटिश चैंबर ऑर्केस्ट्रा के सहयोग से भारत के छह शहरों में होने वाले संगीत समारोह 'समागम' के सिलसिले में कोलकाता आए अमजद अली ने यहां इस अनूठे प्रयोग समेत विभिन्न मुद्दों पर खुल कर बातचीत की. पेश है इसके मुख्य अंश
समागम क्या है? इसका विचार कैसे आया?
समागम पूरब और पश्चिम में संगीत की साझा जड़ों को तलाशने का प्रयास है. दिसंबर, 2006 में जब डेविड मर्फी और अमज़द अली संगीत की संस्कृति और उपकरणों को एकसूत्र में बांधने के लिए साथ आए तभी समागम के आयोजन का विचार मन में आया. मैंने पहली बार स्कॉटलैंड के शास्त्रीय संगीतकारों के लिए धुन लिखी है. बीते साल जून में स्कॉटलैंड के सेंट मैग्नस फेस्टिवल में पहली बार समागम का आयोजन किया गया था. उसके बाद एडिनबर्ग, ग्लासगो और लंदन में भी इसका आयोजन हुआ.
श्रोताओं की प्रतिक्रिया कैसी रही है ?
लोगों ने पूरब और पश्चिम के इस मिश्रण को काफी पसंद किया है. हर समारोह में भारी भीड़ जुटती रही है. देश में यह अपनी तरह का पहला समारोह है. इसलिए इसमें लोगों की दिलचस्पी है. हर धुन की अपनी आत्मा होती है और विशुद्ध आवाज़ पर आधारित संगीत को किसी भाषा की ज़रूरत नहीं होती.
यूरोपियन ऑर्केस्ट्रा के प्रति झुकाव कैसे हुआ?
अपने शुरूआती दौर में मैं यूरोपीय शास्त्रीय संगीत सुना करता था. जाने-माने संगीत निदेशक राय चंद बोराल ने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के प्रति मेरी दिलचस्पी पैदा की थी. वे मेरे पिता उस्ताद हफ़ीज अली खान के संगीत के मुरीद थे.
अमज़द अली ख़ान मानते हैं कि अभी फ्यूजन पर ज़ोर है
लगभग 20 साल पहले हॉंगकॉंग फिलार्मोनिक ने मुझे एक धुन बनाने का न्योता दिया था. इसके बाद अब स्कॉटिश चैंबर आर्केस्ट्रा ने एक घंटे की सिम्फनी लिखने के लिए संपर्क किया. मैंने एडिनबर्ग का कई बार दौरा करने और वहां के संगीतकारों से मिलने के बाद इसकी धुनें बनाईं. हमने इस परियोजना के लिए समागम नाम चुना.
पश्चिमी शास्त्रीय संगीत की खासियत क्या है?
इस समारोह में डेढ़ सौ से ज़्यादा संगीतकार जिस तरह एक लय में कार्यक्रम पेश करते हैं, वह सराहनीय है. आम तौर पर भारत में संगीतकार अकेले ही कार्यक्रम पेश करना पसंद करते हैं.
भावी योजनाएं क्या हैं?
भारत के दौरे के बाद ऑस्ट्रेलिया में भी समागम आयोजित करने की योजना है. बाद में चीन में ताईपेई सिम्फनी के कलाकारों के साथ मिल कर एक कार्यक्रम पेश करना है. चीन में इस आयोजन को 'शांति' नाम दिया है. यह इसी साल मई-जून में आयोजित होगा.
फ्यूजन संगीत का भविष्य कैसा है?
कई युवा संगीतकार फ्यूजन एलबम बना रहे हैं। ऐसे कुछ प्रयास बेहतर हैं तो कुछ औसत. इस क्षेत्र में अभी बेहतरी की काफी गुंजाइश है. फ्यूजन संगीत का प्रयोग पूरी दुनिया में हो रहा है, लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि लय खत्म न हो.
साभार : बीबीसी

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