बंगलोर के पब में श्रीराम सेना और प्रमोद मुतालिक ने हंगामा किया। उसको लेकर जिस तरह से लोगों ने विरोध किया है उसे देखते हुए यही कहने का मन कर रहा है हंगामा है क्यों बरपा चोरी तो नहीं की है... हाँ सीनाजोरी जरूर की है।
सीनाजोरी इसलिए कि कभी एक दौर था जब शराब पीने वाले के विरोध में महिलाये ग्रुप में आती थी। उस दौर में भी ग्रुप की नेता सभ्रांत महिला होती थी। आज पब में शराब पीने वाली महिलाओं के समर्थन करने के लिए पिंक चड्डी अभियान चलाने वाली महिला ख़ुद को पत्रकार कहती है...वह भी एक सभ्रांत महिला होंगी... स्वयम्भू घोषित पत्रकार का स्वभाव कैसा होगा जिसके दिमाग की ये उपज है... आख़िर क्या साबित करना चाहतीं है महिला... ख़ुद के ग्रुप को लोकप्रिय बनाने का सस्ता औजार...
पब कल्चर कभी लोगों के लिए मिलने, बैठने और शांतचित्त मन से बात करने के लिए हुआ करता था, इसकी शुरुआत बुद्धजीवी लोगों ने किया था विदेशों में... वैसे ही जैसा इलाहाबाद में साहित्यकारों के लिए काफी हाउस हुआ करता था एक जमाने में। दिल्ली में कभी रफी मार्ग में आई एन एस बिल्डिंग्स के सामने कोन्स्टीट्यूसन क्लब कैम्पस में साहित्यकर मिल बैठ गप्प करते थे। आज कल वहाँ रेस्त्रुरेंट चलता है जो हिंदीजीवी लोगों के जेब खर्च से बाहर भी है और उनके नज़र में फिजूलखर्च भी...
क्यों लोग इसके पक्ष में कोई आन्दोलन खडा नही करते...
लगता है कल्चर का समर्थन करने वाले लोग ख़ुद को भारतीय कहलाने में शर्मिंदगी महसूस करते है...
देश के आजाद होने के छः दशक बीत जाने के बाद भी लोग विदेशी मानसिकता से क्यों बाहर नही आ पा रहे है... उसके पीछे मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मकसद नज़र आ रहा है की ज़ल्दी से ज़ल्दी कैसे अपना नाम चर्चा में लाया जाए साथ में पैसा भी आए तो और भी अच्छा... ये दौर कभी पुरूषों में होता था... अब ये महिलाओं में भी आ गया... हो भी क्यों ना हमहीं लोगों तो नारा दिया बेटा बेटी एक समान, फिर समान होने की कोशिश करने वाली महिलाओं पर घमासान क्यों... ठीक है पब कल्चर में ही बराबरी की है महिलाये... हालाँकि यह केवल संकेत मात्र है... लोग तो इतने आगे हो गए की वहां तक अपनी सोच नही पहुँच पाई... चाहकर भी... कुछ अपनी संस्कृति रोक देती है तो कुछ अपनी शिक्षा...
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